Sunday, September 20, 2009

समुद्र की लहरें-ड़ा प्रमोद कुमार

समुद्र की लहरें-ड़ा प्रमोद कुमार




एक बार मैं समुद्र के कि‍नारे एक उॅं€ची पत्थर की सि‍ला पर तन्हा बैठा लहरों को देख रहा था । लहरें जो उछल रही थी; कूद रही थी और पानी के थपेड़े खा-खा कर सि‍ला तक आती थी टकराती थी और फि‍र समुद्र में लौट जाती थी । चाँद-एक मि‍ट्टी का ढ़ेर दूसरों की चमक से रोशन; पर चंचल लहरें बेसुध होकर उसके आकर्षण में मानो पागल हो रही थी । खूब ऊँची उछलती थी मानों चाँद को छूने के लि‍ए लालायि‍त हो । इन लहरों की आवाजें मानो चाँद को पुकार-पुकार कर बुला रही हो । मैं इसे चाँद का आकर्षण कहूँ या लहरों का उसके प्रति‍ अन्धा प्रेम, मेरी समझ में कुछ भी नही आ रहा था । हाँ लहरों की ऊँची उछाल मुझे चाँद के प्रति‍ उनके अगाध प्रेम का अहसास जरूर दि‍ला रही थी । न तो वे सि‍ला से टकराने का दर्द महसूस कर रही थी और न ही समुद्र के पानी के थपेड़ों का ।

सि‍ला के पास आती लहरों से मैंने कहा, "ए लहरों ! क्या तुम पागल हो गई हो जो उस चाँद को चाह रही हो जि‍सके चेहरे पर दाग है ? क्यों ऐसी चाह मन में लि‍ए हो जो पूरी न हो सके? क्यो उसको पाने की अभि‍लाषा रखती हो जो सम्भव ना हो सके ? ऐसे तुम कभी कि‍नारा न पाओगी । जिंदगी भर पछताओगी ; थपेड़े खाओगी ।"

फुदकती लहरों ने मुस्करातेहुए कहा, "हे मानव ! लहर का जीवन चलने में है और कि‍नारा पाना तो रूकना है । चलते रहना ही जीवन है । प्रेम प्रेमी के चेहरे का दाग नही देखता और न ही यह देखता कि‍ प्रेमी एक मि‍ट्टी का ढ़ेर है । कौन एक दि‍न मि‍ट्टी का ढेर नहीं हो जाएगा? कौन मि‍ट्टी नही ? हर व्यक्ति‍ एक मि‍ट्टी का पुतला ही तो है । चाँद का आकर्षण उसके खि‍चाव में है जो मेरे तन-मन को पागल कर देता है और मैं उसके प्रेम में हर दर्द, हर थपेड़े भूल जाती हूँ । सुख, दु:ख और सांसारि‍क लालसाओं से ऊपर उठकर कभी प्रेम करके देखो । तुम्हें पता चलेगा कि‍ प्रेम एक सच्चा आनंद है, एक भक्ति‍ है, एक शक्ति‍ है, एक तृप्ति‍ है; जीवन की सम्पूर्णता है और आत्मि‍क सुख है ।"

ऐसा कहकर लहरें मेरी आंखों से दूर कही ओझल हो गई और मैं सि‍ला पर तन्हा बैठा सोचने लगा कि‍ क्यों सांसारि‍क सुख सुवि‍धा से युक्त होते हुए भी व्यक्ति‍ का जीवन सन्तुष्ट, तृप्त एवं आनन्दि‍त नहीं हो पाता ।

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1 comment:

  1. The story by Dr.Pramod kumar is symbolic and touches your heart. Especially the wording that - jivan chalne mein hai, kinara pana to rukna hai.chalte rehna hi jivan hai - speaks volumes and tells the universal truth. We just have to keep on walking because stopping means end of journey.

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