Sunday, September 20, 2009

आदमी की औकात-ड़ा प्रमोद कुमार

आदमी  की औकात-ड़ा प्रमोद कुमार

एक बेरवाला सड़क के फुटपाथ पर अपना बेरों से भरा टोकरा लि‍ए बैठा था । लोग आते, दाम पूछते और चले जाते थे । कोई भी व्यक्ति‍ बेर खरीदने के लि‍ए रूक नहीं रहा था क्योंकि‍ इस साल बेर कुछ मँहगें थे।

तभी एक व्यक्ति‍ आया । उसने घोती-कुर्ता पहना था । कपड़े भी कुछ मैले से थे । शायद कि‍सी गाँव से आया था । उसने बेरवाले से पूछा, ``भाई बेर क्या भाव हैं ?''

बेर वाले ने उसकी ओर देखते हुए जवाब दि‍या ``जाओं भई, आगे जाओं । सुबह-सुबह बोहनी के वक्त दि‍मा$ा खराब मत करो ।''

गाँव के आदमी ने प्यार से कहाँ, ``मैंने बेर का भाव पूछा है । तुम्हें कोई गाली तो दी नहीं । इसमें दि‍माग खराब करने की क्या बात है ?''

बेरवाले ने कहाँ, ``बेर 20 रूपये कि‍लों हैं । क्या तुम ले पाओगे ?''

तभी एक कार वहाँ आकर रूकी और उसमें से कोट-पैंट पहने एक सफेद पोस आदमी उतरा । उसने बेर वाले से भाव पूछा । बेर वाला तुरन्त, गाँव वाले व्यक्ति‍ को छोड़ कार वाले को बताने लगा, ``साब बेर बीस रूपये कि‍लों हैं । कि‍तने दडँ ?''

गाँव वाले व्यक्ति‍ ने बीच में ही बोला, ``बेर वाले ! पहले मैं आया था । पहले मुझे नि‍बटा दो ।''

लेकि‍न बेर वाले ने उसकी बात अनसूनी कर दी । शायद बेर वाला यह सोच रहा था कि‍ इस गाँव के गँवार के पास इतने पैसे ही नही होंगें जो बेर खरीद सके । यदि‍ खरीदेगा भी तो 100-150 ग्राम से ज्यादा नही । वह कार वाले से फि‍र पूछने लगा, ``साहब दो कि‍लो तोल दडँ ।''

गाँव वाले व्यक्ति‍ ने बेर वाले से फि‍र कहाँ, ``बेर वाले ! बेर पहले मुझे दो । मैं इन साहब से पहले आया था ।''

गाँव वाले की बातें सुनकर कार वाले साहब भी चि‍ड़ गया । शायद वह अपनी बेइज्ज़ती महसूस कर रहा था । उसने गाँव वाले व्यक्ति‍ से गुस्से से कहाँ, ``ये ग्ॉवार ! तुम अपनी औकात सें रहो । मैं इसके सारे बेर खरीद सकता हूँ । तुम जैसे कंगालों के पास एक कि‍लों बेर खरीदने तक के पैसे होते नहीं और चले आते है मुझ जैसे रहीश़्ा से टकराने । जाओ दफ़़ा हो जाओं । मुझे बेर लेने दो ।''

गावँ वाले व्यक्ति‍ को गुस्सा आ गया । लेकि‍न अपने गुस्से को काबू रख कर बोला, ``साहब इसमें कि‍सी के अमीर या गरीब होने का प्रश्न नहीं है बल्कि‍ सवाल सि‍द्वान्त का है । क्योंकि‍ पहले मैंआया था इसलि‍ए बेर वाले को बेर पहले मुझे ही तोलने चाहि‍ए ।''


कार वाले साहब और ज्यादा गुस्से मे बोले, ``ए भि‍खारी !तुम अपनी बराबरी मुझसे करते हो । मैं तुम्हारे जैसे दस गँवार खरीद कर अपने घर नौकर रख सकता हूँ । तुम्हारे पास कि‍तने पैसे हैं । 20, 50 या ज्यादा से ज्यादा सौ रूपये । तुम्हारे पास मेरे से ज्यादा पैसे नहीं हो सकते । एक रहीश़्ा से टकराते हो । कहाँ राजा भोज और कहाँ गंगू तेली ।''

``साहब पैसे से आदमी बड़ा नही बनता । इन्सानि‍यत एवं अच्छे व्यवहार मे बड़प्पन पलता है ।'' गाँव वाले ने उत्तर दि‍या ।

कार वाला तुरंत बोला, ``अरे, पैसा से सब खरीदा जा सकता है । पैसा है तो सब कुछ है ।''

``साहब पैसा सब कुछ नहीं होता और न ही पैसे से सब कुछ खरीदा जा सकता है । खैर, यदि‍ आप पैसे से ही औकात नापते हो तो देख लेते हैं कि‍स की जेब में ज्यादा पैसा है । आप भी अपनी जेब से सारे पैसे नि‍काल लि‍जि‍ए, मैं भी अपने सारे पैसे नि‍काल लेता हूँ । जि‍सकी जेब से पैसे ज्यादा नि‍कालेगें वही बेर पहले खरीदेगा ।'' - गाँव वाल ने साहब से शर्त लगाते हुए कहाँ ।

साहब बहुत खुश हुआ । उसको पता था कि‍ उसकी जेब में लगभग 8000 रूपये हैं । साहब ने गाँव वाले की शर्त तुरंत मान ली । साहब ने अपनी जेब से पर्स नि‍काला और पैसे गि‍नकर कहने लगा, ``देख गवॉर; मेरे पास 8690 रूपये हैं । गि‍नकर देख लो ।''

``बस मात्र 8690 रूपये । अब तुम देखों । अरे, बेर वाले गि‍नते रहना ।'' ऐसा कहकर गाँव वाला पैसे नि‍कालने लगा । पहले उसने ऊपर वाली जेब से 540 रूपये नि‍काले । फि‍र धोती के पल्लू से 5000 रूपये नि‍काले । उसके बाद उसने अपनी बनि‍यान की जेब से 10,000 रूपये नि‍कालकर बेर वाले को गि‍नने के लि‍ए दे दि‍ए । ये सब रूपये उसे अपनी भैंस बेचने के बदले मि‍ले थे ।गाँव वाले ने बेर वाले से पूछा, ``कि‍तने हुए ।''

बेर वाले ने कहाँ ``15540 र€पये ।''

गाँव वाले ने कहाँ, ``और भी है, नि‍कालू ?''

कार वाला शर्त हार चुका था । वह अपना सा मुहँ लेकर रह गया ।

``साहब, कभी पैसे का घमंड़ मत करना । पैसा आता है, जाता है । यह कि‍सी का नही । अपने हैं तो अपने कर्म; अपना व्यवहार । आदमी की औकात उसके कपड़ों से कभी नहीं आकँनी चाहि‍ए । उसकी औकात उसकी इन्सानि‍यत में है जो उसके व्यवहार एवं कर्मों से छलकती है । जाओ साहब तुम ही बेर पहले ले लो । मैं तो केवल आपको इन्सानि‍यत का एक सबक सि‍खाना चाहता था।''- ऐसा कहकर गाँव वाला चुपचाप चला गया ।


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