Sunday, September 20, 2009

नि‍र्मल-ड़ा प्रमोद कुमार

नि‍र्मल-ड़ा प्रमोद कुमार

एक व्यक्ति‍ था, जि‍सका नाम था नि‍र्मल। वह हर सुबह नदी में स्नान कर शि‍व की पूजा करता और शि‍वलिंग पर गंगा जल चढ़ाता । तदुपरान्त अपने सांसारि‍क क्रि‍याकलापों में जुट जाता था । उसकी एक कि‍रयानें की दुकान थी, जहां लोग अपनी रोज़ की जरूरतों का सामान खरीदने आते थे । उसकी एक ही चाह थी कि‍ वह लखपति‍ बने, खुब पैसे कमाये और इस चाह को पूरा करने के लि‍ए वह दि‍न में कई बार झूठ बोलता था, कम तौलता। चावल में कंकड़ और न जाने कि‍स - कि‍स में क्या-क्या मि‍लावट करता, जि‍ससे उसे ज्यादा फ़ायदा हो । अपनी पैसे की भूख मि‍टाने के लि‍ए उसने कभी न तो कि‍सी की भूख की चि‍न्ता की और न ही कि‍सी के बीमार होने की । हां नि‍त्य सुबह नदी में स्नान कर गंगाजल लाना वह कभी नहीं भूला । क्योंकि‍ शि‍व की पूजा कर वह हर रोज शि‍वलिंग पर गंगाजल जरूर चढ़ाता था । बि‍ना गंगाजल चढ़ाये उसकी पूजा सपूर्ण नहीं होती थी । भगवान से वह हमेंशा एक ही प्रार्थना करता कि‍ वह खूब अमीर बने । उसके पास पैसा ही पैसा हो ।

एक बार जब वह नदी से जल ले रहा था, तो उसे लगा कि‍ गंगा का जल साफ नहीं है ।उसे वह जल अपने आराध्य देव पर चढ़ाना उचि‍त नहीं लगा । मन ही मन उसने उन लोगों को गालि‍यां दीं, जो गंगा के पानी को दूषि‍त करते हैं । उसके मन में आया क्यों न आराध्य देव पर चढ़ाने के लि‍ए वह स्वच्छ जल लाये । शायद दूषि‍त जल चढ़ाने से ही उसके आराध्य देव उससे प्रसन्न नहीं होते और इसी कारण वह अभी तक लखपति‍ नहीं बन पाया है।
उसने एक खाली पड़ा कनस्तर लि‍या और पहाड़ों की ओर चल दि‍या, जहां से नदी नि‍कलती है, लेकि‍न वहां भी उसे कुछ लोग नदी में स्नान करते, वस्त्र धोते नज़र आयें । उसने सोचा यहां भी स्वच्छ जल नहीं मि‍लेगा, इसलि‍ए वह ऊंची पहाड़ि‍यों को पार करता हुआ एक ऐसे नि‍र्जन स्थान पर पहुंचा, जहां एक स्वच्छ एवं नि‍र्मल जल का सरोवर था । सरोवर का पानी आइने की तरह साफ था । वह खुश होकर बोला, `आखि‍र मुझे अपने आराध्य देव पर चढ़ाने के लि‍ए नि‍र्मल जल मि‍ल ही गया । अब मेरे देव मुझ पर प्रसन्न हो जायेंगे और मेरी मनोकामना पूरी कर देंगे । मुझे लखपति‍ बना देंगे ।'

उसने कनस्तर पानी से भरा और उसे कि‍नारे पर रखकर सोचने लगा, `क्यों न मैं भी इस स्वच्छ सरोवर में नहा लूं । नहाकर मैं भी साफ हो जाउं€गा ।'

लेकि‍न नहाकर जैसे ही उसने सरोवर को मुड़कर देखा, तो पाया कि‍ सरोवर का सारा पानी गन्दा हो गया था तभी सरोवर से आवाज आयी, `अरे मुर्ख ! तुम्हारे जैसे नि‍म्न एवं संकीर्ण वि‍चार वाले लोग ही इस संसार को दूषि‍त करते हैं । स्वच्छता की खोज करने वाले गंदे मानव । पहले स्वच्छ रहना सीखो ! जो दूसरों को दूषि‍त कर खुद स्वच्छ होने का ढ़ोंग करते हैं, वे वास्तव में पवि‍त्र नहीं होते । तुमने अपनी संकीर्ण मानसि‍कता से झुठ का दामन पकड़कर दूसरों को धोखा दि‍या है

अपनी सांसारि‍क इन्छाए पूरी करने के लि‍ए दूसरो को दू:ख दि‍या है । जैसे तुम्हारे शरीर की गंदगी ने सरोवर के नि‍र्मल जल को गंदा कि‍या है, वैसे ही तुमने अपनी तुन्छ मानसि‍कता से सारे समाज को गंदा कि‍या है । क्या दुषि‍त मन से आराध्य देव की पूजा सफल हो सकती है ? याद रखो, मन की शुद्धता का होना बाह्य शारीरि‍क श्ुद्धता रखने से ज्यादा जर€री है । स्वच्छ मानसि‍कता तन को नही, सारे वातावरण को स्वच्छ रखने के लि‍ए प्रेरि‍त करती है । व्यक्ति‍ का महत्व नि‍र्मल जल से नहाकर स्वच्छ होने से नहीं, बल्कि‍ इससे है कि‍ उसने कि‍तनी नि‍र्मलता फैलायी है एवं समाज को स्वच्छ रखने में कि‍तना योगदान दि‍या है । कि‍तना उसने दूसरों को स्वस्थ एवं साफ रखने में योगदान दि‍या है । बि‍ना मन के शुद्ध कि‍ये, शुद्ध जल चढ़ाने से न तो आराध्य देव ही प्रसन्न होंगे और न ही शुद्ध जल से नहाने से व्यक्ति‍ ही पवि‍त्र होगा ।'

ये बाते सुनकर नि‍र्मल चुपचाप स्वच्छ पानी से भरा कनस्तर वहीं छोडकर घर वापस आ गया । अब न तो कभी वो कम तौलता था, न ही मि‍लावट करता । अब उसमें लखपति‍ बनने की चाह भी नहीं थी । अब स्वच्छता उसने अपने मन में पा ली थी । उसे लगने लगा कि‍ उसके आराध्य देव उसके मन में बस गये हैं । अब वह बस एक ही बात बार-बार कहता था -

'मन नि‍र्मल तो धरती नि‍र्मल,
नि‍र्मल सारा आकाश ।
सत्य, प्रेम भरा जि‍स मन में
आराध्य देव का उसमें वास ।।'

Email: drpramod.kumar@yahoo.in

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