दो मांए एक बेटा-ड़ा प्रमोद कुमार
दुनियां में कोई सबसे अनमोल चीज है तो वह है मां । मां अपने बेटे के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर देती है । रात-रात जागकर उसे पालती है । बच्चे की खुशी में खुश होती है और उसके दुख में दुखी । वह भाग्यहीन होता है जिसकी मां उसके पास नहीं होती । मां के आंचल से ज्यादा शीतल छाया कोई नहीं दे सकता । उसके आशीर्वाद से भाग्य के बंद दरवाजे भी खुल जाते हैं । उसका प्यार अमूल्य होता है ।
बाप तो मेरा बचपन में ही गुजर गया था , बस थी तो बस एक मां जिसने मुझे पाल पोस कर बड़ा किया । अपना पेट काट काट कर मुझे शिक्षा दी । उच्च शिक्षा के लिए मुझे अमेरिका भेजा । आज मैं उसी की वजह से अपने पैरों पर खड़ा हूं और न्यूयार्क की एक फर्म में इन्जीनियर के रुप में पदस्थ हूं ।
परदेश में मां की बहुत याद आती । कैसे वह मुझे स्कूल भेजती थी । मुझे बिना खिलाए खुद खाना नहीं खाती थी । खुद की हर बड़ी- बड़ी ख़्वाहिशें मेरी छोटी -छोटी इच्छाओं की पूर्ति के लिए न्यौछावर कर देती थी । मुझे आज भी याद है वह बचपन की घटना जब मैंने एक चाबी वाला खिलौना खरीदने की जिद्द की थी । खिलौना बहुत महंगा था । लेकिन मां ने दिन रात लोगों के कपड़े सीलकर पैसे हकट्ठे किए और मेरे लिए वह खिलौना लाकर दिया ।
मैं यह सब सोच ही रहा था कि मुझे याद आया कि इस 30 नवम्बर को मां अपने जिंदगी के 60 साल पूरे कर लेगी । मैंने सोचा, क्यों ने मां का यह जन्म दिन धूम धाम से मनाया जाए ।
और मैं मां के जन्म दिन की तैयारी में जुट गया । मैंने न्यूर्याक से ही लखनऊ के पांच सितारा होटल का पूरा पार्टी हाल 30 नवम्बर के लिए बुक करा दिया । पांच सौ व्यक्तियो के खाने के लिए भी अग्रिम राशि जमा करा दी । एक बड़े केक के लिए भी आर्डर दे दिया । अपनी टिकट भी लखनऊ के लिए बुक करा ली । जन्म दिन पर मां व मेहमानों को देने के लिए उपहार भी खरीद लिए । इसके अतिरिक्त मां के लिए नई साड़िया, सोने के आभूषण आदि भी ले लिए ।
भारत को प्रस्थान करने का दिन भी आ गया । मैं 28 नवम्बर को हवाई जहाज में सवार हो गया । कुछ घंटों में हवाई जहाज दिल्ली पहुंच गया । वहां से मैंने लखनऊ के लिए हवाई जहाज पकड़ा । ओर मैं 40 मिन्ट में ही लखनऊ पहुंच गया । मैंने एयरपोट से चैकआउ€ट किया और अपना सामान लेकर बाहर की ओर निकल पड़ा ।
मैं टैक्सी ढूंढ ही रहा था कि मैंने एक औरत के रोने की आवाज सुनाई दी । मैं उसके करीब गया । औरत 60-65 साल की होगी । बाल सारे पके हुए और उस पर सफेद रंग की साड़ी । उसके पास एक लोहे का पुराना ट्रंक था जिसको पीटते हुए वह बिलख बिलख कर रो रही थी । उसके चारों ओर कुछ यात्री, टैक्सी चालक एवं एयरपोर्ट के कर्मचारी खड़े थे ।
मैंने एक व्यक्ति से पूछा - ``भाई, क्या बात है ? ये बुढिया क्यों रो रही है।''
व्यक्ति ने जवाब दिया, ``साहब, इसका इकलौता लङका इसे अकेला छोड़ कर अपनी पत्नी के साथ अमेरिका भाग गया ।``
मैंने बुढिया के पास जाकर पूछा, ``क्या बात है माता जी? क्या हुआ?''
उसने रोते हुए जवाब दिया, ``क्या बताऊं बेटा । मेरे बेटे ने मेरा सब घरबार और गहने बेच दिए । कह रहा था - मां तुम हमारे साथ अमेरिका चलो । हम वहां तुम्हारी खूब सेवा करेंगे । जब मैं उनके साथ अमेरिका जाने यहां आई तो वे यह कहकर अंदर चले गए कि हम पांच मिनट में टिकट लेकर आते हैं तुम यहीं बैठो । इस बात को दो घंटे बीत चुके हैं । हवाई जहाज जा चुका है । मेरा सब कुछ लूटकर मेरा बेटा और मेरी बहूं मुझे यहां अकेला छोड़कर चले गए । अब न मेरे पास रहने को कोई ठिकाना है और न खाने को रोटी । मैं इस बुढा़पे में कहां जाऊं ।''
मुझे बुढिया पर तरस आ गया । कुछ कौमल भावनाओं की लहरें मन रुपी समुद्र में उफनने लगी । मैंने बिना ज्यादा सोचे उसके पूछा, ``मां जी, मैं भी तो तुम्हारे लड़के जैसा हूंैं । तुम्हें अमेरिका ले चलूंगा । क्या तुम मेरे साथ चलोगी?''
बुढिया की आंखों में आंसू झलक आए । बस मेरे चेहरे को देखती रही । कुछ जवाब नही दिया । मैंने अपने सामान के साथ उसका सन्दुक भी टैक्सी की डिक्की में रखवा दिया और उसे टैक्सी में बैठाकर खुद भी उसमें बैठ गया । ड्राइवर को चलने का इशारा किया । बुढिया सारे रास्ते चुप रही । शायद बुढापे में एक बेटे द्वारा दिया गया धोखा उसका मानसिक संतुलन बिगाड़ चुका था । उसकी मानसिक दशा ठीक नहीं थी । इसलिए मैं भी चुप रहा । उससे कोई बात नहीं की ।
घर पहुंचकर मैंने इस नई मां को अपनी मां से मिलवाया । सब बातें मां को बताई । मां इस बेसहारा बुढिया को घर लाने पर खुश हुई ।
मैंने तीस नवम्बर को अपनी मां का जन्म दिन बड़ी धूम-धाम से मनाया । जन्मदिन की रोनक देखकर मेरी दोनो मांओं की आंखों में पानी भर आया ।
हम कुछ दिन लखनऊ में रहे और फिर मैं और मेरी दोंनो मांए न्यूर्याक के लिए प्रस्थान कर गए ।
हवाई जहाज में मैंने अपनी नई मां से पूछा, ``मां जी, क्या तुम अमेरिका जाकर अपने लड़के से मिलना चाहोगी । ''
उसने गम्भीर होते हुए दृढता के साथ जवाब दिया - ``बेटा, मेरा वो बेटा तो उसी दिन मेरे लिए मर गया था जब मुझे वह बेसहारा एयरपोर्ट पर छोङकर धोखे से चला गया था । अब तो तुम ही मेरे बेटे हो । तुम भाग्यशाली हो जो तुम्हें दो मांओं का आर्शीवाद मिला है । वह अभागा है जो मां के होते हुए भी बिन मा का बेटा है ।''
और हम तीनों खुशी- खुशी न्यूर्याक में रहने लगे ।
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