धुएं का आंचल-ड़ा प्रमोद कुमार
"चार बज चुके हैं और गाड़ी का नयी दिल्ली स्टेशन से छूटने का समय पांच बजे है । आधा घंटे स्टेशन पहुंचने में भी लगेगा " - ऐसा सोचते हुए दिनेश अपनी अटैची में सफर का सामान जल्दी - जल्दी डालने लगा । आज दिनेश को आफिस के काम से भटिंडा जाना है । वहां अपनी कंपनी की एक ब्रांच खोलने के लिए जगह देखनी है। दिनेश ने अटैची उठायी और घर से बाहर निकल गया । सड़क पर आया और एक ऑटो में बैठते हुए कहा "नयी दिल्ली स्टेशन चलो " ।
स्टेशन पहुंचते ही वह इन्क्वायरी खिड़की पर आया और पूछा, "पंजाब मेल किस प्लेट फार्म पर है ?" "ज़नाब पंजाब मेल 5 घंटे देरी से है । मथुरा में एक गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गयी है , इसलिए सभी गाड़ियां देरी से आ रही हैं ।" इन्क्वायरी बाबू ने एक सॉस में बता दिया ।
दिनेश ने अटैची को क्लॉक रूम में रखा और स्टेशन से बाहर निकलने लगा तभी एक लड़की ने रोकते हुए पूछा "साहब, गाजियाबाद कौन सी गाड़ी जायेगी ?"
दिनेश ने एक नजर उसको देखा । लड़की 24-25 साल की होगी । चेहरा भी सुन्दर था । दिनेश उसे निहार ही रहा था कि उसने फिर प्रश्न किया , "क्या आप बताने का कष्ट करेंगे ?"
दिनेश ने उत्तर दिया , "मैडम ! इन्क्वायरी खिडकी से पता करें ।"
लड़की फिर कहने लगी , "देखिये मैं एक परेशान लड़की हूं और मेरे मां बाप भी नहीं हैं । मै
``तभी दिनेश ने बीच में ही टोक कर कहा , ``मैडम, मैं इसमें क्या कर सकता हूं ! आपको बताया तो है कि मैं नहीं जानता गाजियाबाद कौन सी गाड़ी जायेगी । हां , आप इन्क्वायरी खिड़की से पता कर लें !''
लड़की दिनेश के पीछे-पीछे चलती हुई बोली , ``मेरी कोई सहायता नही कर रहा है । मैं अकेली हूं और मुंबई से आयी हूं ।''
दिनेश मन ही मन सोचने लगा , "मेरी गाड़ी पांच घंटे लेट है और मुझे समय भी काटना है; क्यों न इससे बातचीत करके समय काटा जाए । उसकी ओर मुड़कर दिनेश कहने लगा , ``सुनो , मैं चाय पीने बाहर जा रहा हूं । तुम्हें कुछ खाना - पीना हैं ?''
वह चुप रही और दिनेश के साथ - साथ स्टेशन से बाहर आ गयी । वहां एक कॉफी हाउस मे बैठकर दोनों काफी पीने लगे ।
दिनेश ने पूछा, "क्या परेशानी है तुम्हें ? क्या तुम गाजियाबाद मे रहती हो ?"
"नहीं , मेरा नाम सुषमा कक्कड़ है और पंजाब के एक गांव की रहने वाली है । अभी मैं मुम्बई से आयी हूं "- वह कहने लगी ।
दिनेश को सुषमा कक्कड़ की पहेली समझ मे नही आ रही थी ।
उसको सुषमा के बारे में जानने की उत्सुकता हुई और पूछने लगा , "मुझे कुछ समझ में नही आ रहा हैं । तुम पंजाब की हो , मुम्बई से आयी हो । तुम झूठ तो नहीं बोल रही हो ?"
"नहीं , मैं झूठ नहीं बोल रही । मेरा बचपन जालंधर के पास चट्टी गांव में गुज़रा है । बाप बचपन में ही स्वर्ग सिधार गये । बुढी मां ने मुझे और मेरी बड़ी बहन को पाला । बहुत ही मुश्किल से मां ने बड़ी बहन की शादी रमेश तलवार से कर दी जो बहन को लेकर मुम्बई चले गये । मुम्बई में मेरे जीजाजी फिल्मों के निर्माण कार्य में लग गये । आप जानते होंगे उन्होंने `हम तुम', `प्यार का रिश्ता' , `दिल का रिश्ता' जैसी कई फिल्मे बनायी हैं ।" सुषमा अपने बारे में बोलती रही ।
कॉफी खत्म हो चुकी थी । दिनेश ने दो कप और कॉफी लाने के लिए बैरे को बोला ।
सुषमा की आंखों में थोडा गीलापन था । वह अपने दिल के दर्द के उजागर करते हुए कहने लगी , "साहब , मेरे जीजा जी की `दिल तेरा दिवाना ' पिक्चर पिट गयी और वह काफी कर्ज़े के दबाव में आ गये । पांच साल पहले वह गांव में आये और न जाने मां को दवाई के बहाने क्या पिलाया कि वो मर गयी ।मैं अकेली लड़की , क्या कर सकती थी । मेरा सहारा अब केवल मेरी बहन और जीजा जी ही थे । इसलिए मैं चाह कर भी मां की हत्या के लिए जीजाजी को दोषी नही सिद्ध कर सकी । मां के मरने के बाद उन्होंने गांव की ज़मीन जायदाद बेच डाली और सब पैसे और मुझे लेकर मुम्बई आ गये । लगभग एक साल तो मेरी बहन और जीजा जी ने मेरा ख्याल रखा और उसके बाद मैं उन्हें बोझ लगने लगी । मेरे अपने जीजा जी ने मुझे फिल्म में काम दिलाने के बहाने एक फाइनेन्सर के हवाले कर दिया । फाइनेन्सर ने मुझे अपने फायदे के लिए उपयोग किया । फिल्म लाइन में अपना सम्पर्क बढ़ाने के लिए और बड़े - बड़े निर्माताओं एवं निर्देशकों से फायदा उठाने लिए मुझे कई जगह भेजा, जहां जाकर मुझे इन लोगों की किस-किस तरह सेवा करनी पड़ी मेरा दिल ही जानता है ।
पहली बार मैंने बहुत संघर्ष किया; बहुत चिल्लायी लेकिन मेरी आवाज एक बंद कमरे में दब कर रह गयी ।इन इज्ज़़त वालों के समाज में एक अकेली लड़की की चीखें कोई नहीं सुन पाया । जब मैंने अपनी बहन से इस बारे में अपनी अनिच्छा प्रकट की तो बहन ने भी टाल दिया । मुझे लगा कि मेरी बहन और मेरे जीजाजी दोनों ही मुझे बर्बाद करने में शामिल थे । मैंने बहुत लोगों को अपनी दु:ख भरी कहानी सुनायी , लेकिन हर व्यक्ति मुझ पर हंसता रहा और मुझमें केवल एक जवान लड़की को ही खोजता रहा । मै तंग आ कर घर से भाग गयी और मैने एक `बॉर ' में नौकरी कर ली । मै बारहवीं पास हूं । लेकिन अकेली लड़की को इसके अलावा मुम्बई में कोई और नौकरी क्या मिल सकती थी ।"
अब तक सांय के 8 बज चले थे । दिनेश ने पूछा , "चलो खाना खाते हैं" और वे दोनों खाना खाने एक भोजनालय के लिए निकल पड़े । भोजनालय में जाकर दिनेश ने खाने का आर्डर दिया । खाना खाते-खाते वह बोलती रही , "बार की जिंदगी बहुत गंदी होती है । मैं रातभर जागती थी और सुबह सोती थी । न जाने किन-किन लोगों के साथ मुझे रात गुज़ारनी पड़ती थी । बार का मालिक मेरे से सब पैसे, जो भी मैं कमाई करती ले लेता था । हां , कुछ पैसे जो लोग खुशी से टिप देते थे वही मेरे पास रह जाते थे । बदले में बार का मालिक मुझे रहने और खाने को देता था । मैं इस जिन्दगी से तंग आ चुकी थी और इसलिए मैं यहां आ गयी। "
दिनेश को उसकी बातों में कुछ सच्चाई महसूस हुई । दिनेश ने पूछा , "तुम्हारा कोई रिश्तेदार दिल्ली में हैं ?" उसने बताया , "मेरे मामा जी पटेल नगर , दिल्ली में रहते हैं। मैंने उनसे सहायता की प्रार्थना की थी लेकिन उन्होंने भी मुझे अपने पास रखने से मना कर दिया । "
दिनेश ने भोजनालय के टेलीफोन से उसके मामा से सम्पर्क किया लेकिन उसने यह कह कर जवाब दे दिया कि वह एक वेश्या को अपने घर रख कर घर को बर्बाद नहीं करना चाहता । दिनेश ने फिर सुषमा से पूछा, " क्या तुम किसी के बच्चे की देखभाल कर सकती हो ? मेरे एक दोस्त हैं प्रदीप गुलाटी जिसको अपने बच्चे के लिए एक आया की जरूरत है ।"
उसने तुरन्त उत्तर दिया , "मैं बच्चे को कैसे संभाल पाउं€गी ! यह कार्य मेरे स्तर का नहीं हैं । मेरा कैरियर बर्बाद हो जायेगा । आप मेरे को कहीं एक कमरा दिलवा दें । मैं अकेले यदि किसी के पास किराये पर रहने के
लिए कमरा मांगने जाऊंगी तो कोई नहीं देगा । आप मेरे साथ चले और गाजियाबाद में एक कमरा किराये पर दिला दें । मैं मेहनत-मजदूरी करके खा लूंगी ।"
दिनेश ने तुरंत कहा , "तुम वहां भी बाजार लगा लोगी और वहां के वातावरण को दूषित करोगी"। "नहीं , मैं अब आराम से रहना चाहती हूं । मैं उस जिन्दगी से तंग आ चुकी हूं । आप कुछ पैसे मकान के किराये के लिए दे देना जो मैं आपको बाद में वापिस कर दूंगी । बाकी खाने का खर्चा मैं खुद कुछ काम करके चला लूंगी । तुम कभी-कभी आते रहना ।" सुषमा ने कहा ।
दिनेश ने फिर कहॉ , "क्यों न तुम नारी निकेतन चली जाओ । मैं तुम्हें वहां भिजवा देता हूं ।"
उसने तुरंत जवाब दिया , "मैं नारी निकेतन नहीं जाना चाहती । वहां मेरी जिन्दगी बर्बाद हो जायेगी । न तो मैं कुछ कर पाऊंगी और न ही इस जिन्दगी में कुछ बन पाऊंगी ।"
9 बजे चुके थे । दिनेश अब सुषमा से पीछा छुड़ाना चाहता था । उसने सुषमा से कहा "मेरी गाड़ी का समय हो गया हैं । मुझे भटिंडा जाना हैं । पंजाब मेल 10 बजे आ जायेगी । मैं स्टेशन चलता हूं ।"
वह दिनेश के साथ-साथ चलती रही । उसने कहा , "मुझे भी भटिंडा ले चलो । भटिंडा में ही मुझे मकान दिला देना ।"
दिनेश ने कहा , "मैं दफ्तर के काम से भटिंडा जा रहा हूं । मैं भटिंडा में नहीं रहता ।"
"मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगी ।" सुषमा ने कहा ।
दिनेश ने जवाब दिया , "मुझे जालंधर अपने गांव जाना हो तो मै जालंधर का टिकट खरीद कर दे सकता हूं । मैं तुम्हें अपने साथ नहीं ले जा सकता । मैं शादीशुदा हूं । मेरे बच्चे हैं । मैं एक रखेल रख कर अपनी पत्नी एवं बच्चों को धोका नहीं दे सकता । मुझे माफ करों ।" सुषमा पीछा छोड़ ही नहीं रही थी । वह स्टेशन पर साथ-साथ चलती रही । दिनेश ने सिगरेट का पैकेट खरीदने के बहाने उससे पीछा छुड़ाने के लिए कहां; "सुषमा , मैं सिगरेट का पैकेट खरीदने जा रहा हूं । तुम इस एक नंबर प्लेटफार्म पर ठहरो ।" ऐसा कह कर
दिनेश वहां से गायब़ हो गया और पंजाब मेल जो 9 नम्बर प्लेटफार्म पर खड़ी थी उसके कोच नम्बर चार में चढ़ गया । दिनेश बहुत थक गया था । बर्थ पर लेटते ही उस नींद आ गयी ।
सुबह जब गाड़ी सहारनपुर पहुंची तो उसने वहां चाय पी और अखबार खरीद कर पढ़ने लगा । अखबार में एक खबर पढ़कर वह हैरान हो गया । खबर में लिखा था कि पांच हजार वेश्याएं मुम्बई में बम फटने एवं दंगे होने की वज़ह से वहां से बाहर चली गयी हैं ।
दिनेश को अब समझ आया कि सुषमा भी उन्हीं पांच हजार वेश्याओं में से एक है जो मुम्बई मे रहती थी लेकिन वहां दंगा होने की वज़ह से मुम्बई से प्रस्थान कर गयी हैं ।
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