Sunday, September 20, 2009

प्रोफेसर बैरागी के कुत्ते-ड़ा प्रमोद कुमार

प्रोफेसर बैरागी के कुत्ते-ड़ा प्रमोद कुमार





मेरे परि‍चि‍त एक प्रोफेसर हैं, जि‍न्हें प्यार से लोग "प्रोफेसर बैरागी" कहकर बुलाते हैं । वैसे उनका नाम "टाइड़ा राम" है । परन्तु कोई भी उन्हें इस नाम से नहीं पुकारता । सब उन्हें "टेढ़ाराम" नाम सें जानते हैं । हाँ, यह बात अलग है कि‍ उसके सामने कि‍सी को उन्हें टेढ़ाराम कहने की हि‍म्मत नहीं । एक बार प्रोफेसर पाण्डे ने उन्हें "टेढ़ाराम" कहकर छेड़ दि‍या था। बैरागी साहि‍ब लगे बरसने - "प्रोफेसर पाण्डे आपको कि‍सने प्रोफेसर बना दि‍या । आप सही उच्चारण करना तो जानते नहीं। मेरा नाम प्रोफेसर टाइड़ाराम है, न किं टेढाराम । आप उच्चारण सीखने की कोई क्लास ज्वाइन कर लीजि‍ए आदि‍-आदि‍।"

लोगों ने प्रोफेसर बैरागी के क्रोध से डरके उन्हें 'टी, आर. बैरागी' पुकारना चालू कर दि‍या, लेकि‍न वे जब भी बोर्ड पर लि‍खते थे उनकी लि‍खाई उनके नाम को सार्थक कर देती थी । वे हमेशा टेढ़ा लि‍खते थे । यही नहीं, वे गर्दन भी टेढ़ी करके ही चलते थे । मैंने कई बार देखा कुछ मनचले स्टूडेंट उन्हें तंग करने के लि‍ए जब भी मि‍लते और "राम राम" करते धीरे से एक स्टूडेण्ट "टेढ़ाराम" जरूर फुसफुसाता ।

खैर ! दि‍न गुजरते गये और वे प्रोफेसर बैरागी के रूप में जाने जाने लगे ।

प्रोफेसर बैरागी अपराध कानून के शि‍क्षक हैं, लेकि‍न उन्हें कुत्तों से बहुत प्यार है । न जाने कि‍स - कि‍स नस्ल के कुत्ते उनके पास हैं । उन्हें वि‍श्ववि‍द्यालय परि‍सर में ही एक बड़ा मकान मि‍ला हुआ है, जहां वे अपने कुत्तों के साथ रहते हैं । कुत्तों के साथ वे इतने मस्त रहे कि‍ उन्हें पता भी नहीं चला कि‍ कब उनकी जि‍न्दगी के 45 सावन गुज़र गए । उन्हें शादी का ख्याल आया था, कोशि‍श भी की थी लेकि‍न उनकी गंजी खोपड़ी उनके आड़े आ गई । यही नहीं, वे चाहते भी थे 20-22 साल की कुवांरी कन्या, जो उन्हें न मि‍ल सकी । अब उनकी दुनि‍याँ उनके कुत्ते हैं । कुत्ते भी तरह-तरह के - पमेरि‍यन, बॉक्सर, बुलडॉग, हि‍पेट, कोली, पकि‍नीज, बोर्जोई, अलसेशि‍यन आदि‍ ।

कुत्तों से बैरागी जी का प्रेम इतना ज्यादा है कि‍ वे इनकी सेवा में खुद को भूल जाते हैं । पहले कुत्तों को खि‍लाते हैं फि‍र स्वयं खाते हैं । अपनी सारी तन्ख़ाह कुत्तों पर खर्च कर डालते हैं । इसलि‍ए पैसे की हमेशा उन्हें कि‍ल्लत रहती है । न जाने कि‍तनों से पैसा उधार ले रखा है । यहां तक कि‍ अपने भवि‍ष्य नि‍धि‍ से भी पैसा नि‍काल-नि‍काल कर कुत्तों पर खर्च कर डाला । उनका कुत्तों से प्यार एक जुनून बन गया है ।

एक बार बैरागी साहि‍ब मुझे कालि‍ज की लाइब्रेरी के बाहर मि‍ले और पूछने लगे, "अरे वि‍नोद ! तुम्हारे पास दो सौ रूपये हैं ।"

मैंने कहा, "कि‍सलि‍ए, प्रोफेसर साहि‍ब ।"

वे उदास मन से कहने लगे, "अरे वो हेमा है न, उसने कल से कुछ भी नहीं खाया है । वह बीमार है । उसे डाक्टर को दि‍खाना है ।"

एक तो प्रोफेसर और वह भी मेरे कालि‍ज के । मैंने तुरन्त दो सौ के नोट जेब से नि‍कालकर उनके हाथ में रख दि‍ये ।

कुछ दि‍नों बाद मैंंने सोचा - ``क्यों न प्रोफेसर साहि‍ब के घर चला जाये । चाहे जैसे भी हो, हैं तो प्रोफेसर । अपना पीएच. डी. का वि‍षय भी तो चुनना है । शायद इस वि‍षय में वे मेरी मदद कर सकें ।''

जब मैं उनके घर पहुँचा तो देखा कि‍ प्रोफेसर साहि‍ब अपने एक कुत्ते को नहला रहे थे । मुझे गेट पर देखते ही कहने लगे, ``आओ वि‍नोद ! देखों मेरी हेमा कैसे शांत है । कल इसे जुकाम हो गया था इसलि‍ए इसे गुनगुने पानी से नहला रहा हूँ । वि‍नोद, देखो कि‍तनी सुन्दर है । देखो इसकी प्यारी-प्यारी सी गहरी आँखें। जब यह चलती है तो सावन की फुहारों के गि‍रने की आवाजें सी आती हैं । देखो इसके रेशम जैसे बाल । देखो-देखो, छू कर देखो ।''

मैंने डरते-डरते उसको छुआ । बैरागी साहि‍ब कहने लगे, ``वि‍नोद ! मैं अपने हर बच्चे को सुपर लक्स से नहलाता हूँ । मेरे कुल दस बच्चे हैं । हेमा इनमें सबसे प्यारी है । हर रोज तीन कि‍लो मीट बाजार से लाकर उन्हें खि‍लाता हूँ । यहां गर्मी बहुत पड़ती है । मेरे बच्चे बहुत की नाजुक हैं । इसलि‍ए मैने इनके कमरे में ए.सी. लगवा दि‍या है ।लेकि‍न ये मुझे इतना प्यार करते हैं कि‍ ए.सी. रूम को छोड़कर हर रात मेरे पास आकर सो जाते हैं ।''

मुझे प्रोफेसर साहि‍ब की बातें सुनकर यह आभास हो गया कि‍ मैंने यहां आकर गलती की । मैंने बीच में ही टोककर कहा, ``सर, मैं आपसे शोध के वि‍षय पर कुछ सुझ़ाव लेना चाहता हूँ । मैं चाहता हूँ कि‍ "राजनैति‍क अपराधीकरण एवं भारतीय प्रजातन्त्र" वि‍षय पर शोध करूँ । क्या शोध के लि‍ए यह वि‍षय ठीक रहेगा'' ?

बैरागी जी तुरन्त बोले, "क्या बेकार का वि‍षय चुना है। अरे, तुम्हें कुछ ऐसा वि‍षय लेना चाहि‍ए जो आज के सन्दर्भ में सही उतरता हो। जि‍स पर लि‍खकर तुम अपराधों को रोकने के बारे में अपने सुझाव दे सको ।"

अपने एक कुत्ते की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा, "अरे टोडो, आओ बेटा ! आज मुझे ही तुम्हारी मालि‍श करनी पड़ेगी । रामू तो आज आया नहीं । कि‍तनी छुट्टि‍याँ मारता है । हजार रूपये महीना देता हूँ, फि‍र भी महीने में दस दि‍न गायब हो जाता है । देखो वि‍नोद, टोडो कि‍तना कमजोर हो गया है।"

एक कुत्ते को सहलाते हुए प्रोफेसर बैरागी जी फि‍र बोलने लग,े - ``वि‍नोद, कुत्ते बहुत ही समझदार प्राणी होते हैं । इनकी वफ़ादारी की मि‍सालें दुनि‍यां भर में मशहूर हैं । माँ-बाप, भाई-बहन, यार-दोस्त, बीबी-बच्चे सब द़गा दे सकते हैं लेकि‍न ये कुत्ते कभी अपने मालि‍क को धोखा नहीं देते । कुत्तों की सडंघने की शक्ति‍ बहुत प्रबल होती है । कुत्ते चतुर, मि‍त्रवत् और अच्छे साथी होते हैं और एक अर्से से इन्हें मनुष्य का श्रेष्ठ मि‍त्र कहा जाता रहा है । 'मोंग्रेल' कुत्ता सभी कुत्तों से अधि‍क चतुर होता है । कई जगह कुत्तों से भेड़ चराने का काम लि‍या जाता है । कुछ अंधे व्यक्ति‍ कुत्ता इसलि‍ए रखते हैं क्योंकि‍ वह उसे राह दि‍खाने में सहायता करता है । कुछ लोग कुत्तों को शि‍कार पर ले जाते हैं । कुत्ते पुलि‍स के खोज़-दस्ते के महत्वपूर्ण अंग हैं। । ये अपराधि‍यों को पकड़ने में पुलि‍स की सहायता करते हैं । कुत्ते कभी गहरी नि‍द्रा में नहीं सोते । सोते हुए भी वे सतर्क रहते हैं और थोड़ी सी आहट से जाग जाते हैं । व्यक्ति‍गत सम्बन्धों में जो बेवफाई आज देखने को मि‍लती है वह कुत्तों में नहीं है ।''

मैं प्रोफेसर साहि‍ब की बातें सुनकर बोर हो रहा था । उकता सा गया । मैंने फि‍र बीच मं टोकते हुए कहा - ``सर, कोई अच्छा वि‍षय बताइए ना जि‍सपर मैं शोध कर सकँडं ।''

प्रोफेसर साहि‍ब मेरी बात सुनकर कुछ सोचने लगे । और फि‍र बड़ें ही दार्शनि‍क अंदाज में बोले, ``तुम कुत्तों से सम्बन्धि‍त वि‍षय लो ।'' जैसे कि‍ "कुत्तों का अपराधि‍यों को पकड़वाने में योगदान" । हाँ वि‍नोद, यह वि‍षय ठीक रहेगा । तुम इस वि‍षय पर अच्छा शोध कार्य कर सकते हो । मैं तुम्हारी मदद करूंगा।"

"सर, पीएच.डी. के लि‍ए क्या यह वि‍षय ठीक रहेगा'' - मैंने हि‍चकचाते हुए कहा ।

"क्यों नहीं, शायद तुम नहीं जानते कि‍ कुछ कुत्ते दुसरे कुत्तों के मुकाबले बेहतर काम करते हैं । उनकी इसी कार्य वि‍शेष के लि‍ए नस्ल वि‍कसि‍त की जाती है । मसलन खरगोश व चूहों के शि‍कार के लि‍ए टेरि‍यर नस्ल तैयार की गयी है, गाय-भेड़-बकरी चराने के लि‍ए कोली नस्ल तथा जंगली जानवरों को खदेड़कर शि‍कार करने के लि‍ए बोर्जोई नस्ल के शि‍कारी कुत्ते वि‍कसि‍त हुए हैं । बैल-मारने जैसे क्रूर खेल में पहले पहल बुलडॉग का इस्तेमाल हुआ ।" - प्रोफेसर साहि‍ब मुढे समझने लगे ।

प्रोफेसर साहि‍ब बि‍ना रूके बोलते जा रहे थे, ``देखो वि‍नोद ! हम कुत्तों का एक फार्म हाउस बनाएंगे और अच्छी नस्लों की क्रॉस ब्रीडिंग कराकर एक नई नस्ल वि‍कसि‍त करेंगे, जो अपराधि‍यों का पकड़वाने में पूरा सहयोग कर सके । वि‍नोद, हम कुत्तों की एक ऐसी नस्ल वि‍कसि‍त करेंगे, जो वफादारी में ही नहीं बल्कि‍ समझदारी में भी आदमी से आगे हो । तुम चि‍न्ता मत करो । तुम्हारा शोध मैं ही पूरा कर दूंगा । बस तुम दो लाख रूपये का इन्तजाम कर लो । पहले हम फार्म हाउस के लि‍ए जमीन खरीदेंगे । फि‍र वि‍देशों से कुछ अच्छी नस्ल के कुत्ते मंगवायेंगे ।''

अब मेरी सहनशक्ति‍ जवाब देने लगी थी । मैंने उठते हुए कहा, "सर मुझे एक जरूरी काम है । मैं फि‍र कभी आऊंगा ।"

लेकि‍न बैरागी साहि‍ब कहां जाने देते। तुरन्त मेरा हाथ पकड़कर बैठाते हुए बोले, "अरे कहां जाते हो । बैठो, मैं तुम्हें कुत्तों की अच्छी नस्लों के बारे में बता रहा हूँ । जो अपराधि‍यों को पकड़वाने में बहुत सहायक होती हैं । एल्सेशि‍यन कुत्ते बहुत --- (प्रोफेसर साहि‍ब कुत्तों की नस्लों के बारे में बताने लगे ।)

मुझे अब उनकी बातों से अरूचि‍ होने लगी । लेकि‍न मैं उनको नाराज़ करके जाना भी नहीं चाहता था । मैंने दोहराया, ``सर आज मुझे जाना है । मैं फि‍र कभी आउं€गा, तब इत्मीनान से कुत्तों की नस्लों के बारे में और जानकारी प्राप्त करूंगा ।''

प्रोफेसर बैरागी जी समझ गए कि‍ अब मैं रूकने वाला नहीं । इसलि‍ए बोले, "सुनो तुम्हारी जेब में कि‍तने पैसे हैं ? जरा देखो । मुझे रूस्तम के लि‍ए चि‍कन लाना है । रूस्तम को चि‍कन बहुत पसन्द है । एक नर्म दरी भी लानी है, जि‍स पर आराम से मेरे बच्चे लेट सकें ।"

मैंने पर्स नि‍काला और सौ रूपए का एक नोट उनकी ओर बढ़ाने लगा । लेकि‍न प्रोफेसर साहि‍ब को कुछ और रूपये भी मेरे पर्स में नज़र आ रहे थे । वे कहने लगे, ``वि‍नोद ! सौ रूपये मे आजकल क्या होता है । देखो कुल कि‍तने हैं ?''

मैंने कहा, "सर, कि‍ताबें खरीदने के लि‍ए आज घर से 500 रूपये मांगे थे । दस-बीस रूपये फुटकर हैं ।"

"ठीक है । फुटकर तुम रखो । तुम्हारे बस के कि‍राये के काम आयेंगे । अभी 500 ही दे दो ।" ऐसा कहते हुए उन्होंने 500 रूपये मेरे पर्स से नि‍कालकर पर्स मुझे वापि‍स कर दि‍या ।

मैं सकपका गया । अब जल्दी-जल्दी वहां से चलने लगा । तभी पीछे से प्रोफेसर साहि‍ब की आवाज़ आई, "वि‍नोद कल जरूर आना । मैं तुम्हें कुत्तों की महत्वपूर्ण नस्लों के बारे में बतलाउं€गा । तुम्हारी पीएच.डी. पूरी हो जायेगी । लेकि‍न याद रखना इस वि‍षय पर शोध करने के लि‍ए कुत्तों का एक फार्म हाउस बनाना जरुरी है । और सुनो फार्म खरीदने के लि‍ए पैसे का इंतजाम जल्दी से जल्दी करके मुझे बताना।"

मैं तेजी से कदम भरते हुए प्रोफेसर साहब के परि‍सर से बाहर आ गया । बाहर आकर राहत की सांस ली और प्रण कि‍या कि‍ प्रोफेसर टेढ़ाराम बैरागी के घर मैं अब कभी नहीं जाउंगा और न उनसे मि‍लूँगा ।

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1 comment:

  1. It is really a very nice story. There are all types of characters you meet in life.

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