Wednesday, March 30, 2011

मंडी-ड़ा प्रमोद कुमार

मंडी-ड़ा प्रमोद कुमार




मंडी हिमांचल प्रदेश की वादियों में बसा एक छोटा सा कस्बा । चारों ओर ऊँची - ऊँची पहाड़ियाँ और उन पर लहराते हरे भरे पेड़ । प्रकृति का यह मोहक दृश्य बहुत ही लुभावना लग रहा था । वैसे तो मंडी हिमांचल प्रदेश का एक मशहूर जिला है लेकिन इसकी आबादी इतनी नहीं है जितनी की एक मैदानी कस्बे की होती है । एक छोटा सा बस अड्डा और उसके पास से निकलती हुई ढलानदार छोटी सड़क के दोनों ओर तरह तरह के समान से सजी दुकानें । यही मंडी का मुख्य बाजार कहलाता है ।



अजीत मंडी पहली बार आया था । उसे अपने आफिस की ओर से जिला न्यायालय में एक एफीडेविट देना था । बस सुबह 7 बजे पहुची । वह एक होटल में गया, स्नान कर तैयार हुआ औठर कोर्ट के लिए निकल पड़ा । कोर्ट पास ही था इसलिए वह पैदल ही कोर्ट पहुच गया । केस की सुनवाई लगभग 12.00 बजे दोपहर में हुई और एक बजे तक वह कोर्ट के कार्य से निश्चित हो गया । वापिस होटल आया, खाना खाया और कुछ देर आराम करने लगा ।



सायं चार बजे वह बाजार घुमने निकल पड़ा । पहाड़ें में दिन जल्दी छिप जाता है इसलिए मार्केट भी देर रात तक खुली नहीं रहती । बाजार घूमते घूमते सायं के सात बज गए । उसने एक रेस्टोरेन्ट में खाना खाया और होटल वापिस आ गया । वह चाहता था रात्रि बस सेवा से दिल्ली पहुच जाए । इसलिए उसने होटल से "च्चटक आउट " किया और सीधे बस अड्डे की ओर चल दिया ।



दिल्ली की बस रात्रि दस बजे चलती थी । उसने टिकट ली और बस मे बैठ गया । बस ठीक दस बजे रवाना हुई । मंडी से दिल्ली तक की दूरी लगभग 12-13 घंटे की थी । अजीत को खिड़की के पास वाली सीट मिल गई । मई के महीने में खिड़की से आती पहाड़ी ठंडी हवाओं ने ऐसी लोरी सुनाई कि उसे नींद आ गई । नींद जाकर सुबह 6 बजे टूटी जब बस कुरूक्षेत्र पहुची । ड्राइवर ने कहॉ - " यहॉ बस 15 मिनट रूकेगी । जिस किसी को चाय पानी पीना हो पी ले । "



सभी लोग चाय पीने के लिए नीचे उतरने लगे । अजीत के पास वाली सीट पर एक लड़का बैठा था । अजीत ने उससे कहा, "चलो चाय पीते हैं ।"

अजीत एवं वह लड़का चाय पीने नीचे उतरे । लड़का 26-27 साल का था । सफेद कमीज़ एवं भूरे रंग की पैंट पहने था । लड़का चुपचाप खड़ा था । अजीत ने दो चाय का आदेश दिया और चुप्पी तोड़ते हुए लड़के से पूछा - तुम्हारा नाम क्या है ?



"मेरा नाम राम सिंह है"- लड़के ने कुछ सोचते हुए बताया । लड़का चुपचाप चाय पीने लगा ।



अजीत ने फिर पूछा-" कहाँ तक जा रहे हो । "



"दिल्ली तक "- लड़के ने धीरे से कहा ।



" मैं भी दिल्ली जा रहा हू "- अजीत ने तुरंत कहाँ । अजीत की बात सुनकर उसने कुछ नहीं कहा, चुपचाप चाय पीता रहा । शायद वह ज्यादा घुलना-मिलना नहीं चाहता था इसलिए अजीत ने भी आगे बात नहीं की ।



तभी कन्डक्टर ने बस में बैठने के लिए आवाज़ लगाई और हम सब अपनी अपनी सीटों पर आकर बैठ गए। अजीत के पास वाली सीट पर रामसिंह गुमसुम सा बैठा था । बस ने धीरे- धीरे तेज रफ़तार पकड़ ली । अजीत बातूनी था । कब तक चुप रहता ।



"क्या आप अपने आफिस के कार्य के लिए मंडी गए थे । " अजीत ने चुप्पी तोड़ते हुए रामसिंह से पूछा । रामसिंह चुपचाप रहा ; न अजीत की ओर देखा और न ही कोई जवाब दिया ।



अजीत ने फिर गर्दन रामसिंह की ओर घुमाते हुए पूछा - "आप क्या काम करते हैं ?"



पहले तो रामसिंह कुछ सकपकाया । फिर सोचते हुए बोला " मेरा मंडी में फलों का बाग़ है । हर साल बाग़ ठेके पर देता हू और पैसा लेकर दिल्ली वापिस आ जाता हू ।"



" कितना पैसा मिल जाता है" - अजीत ने उसकी ओर देखते हुए फिर पूछा ।



रामसिंह कुछ देर चुप रहा फिर बिना गर्दन अजीत की ओर घुमाए कहने लगा, - "यही कोई 50-60 हजार रूपए ।" और ऐसा कहकर उस नवयुवक ने आँखें बंद कर ली । चुपचाप खिड़की से बाहर देखने लगा । सड़क के दोनों तरफ हरे भरे पेड़ और पेड़ों के बीच काली सड़क पर दौड़ती बस - एक सुखद आनंद का अहसास करा रही थी । अजीत ने सीट से उठकर पीछे देखा; कुछ यात्री सो रहे थे और अन्य या तो कुछ पढ़ रहे थे या फिर आपस में बातें कर रहे थे ।



बस दिल्ली बार्डर पार कर ही रही थी तभी कुछ पुलिस वालों ने बस को रोक दिया । पुलिस वाले बस में चढ़ने लगे । उसी समय मेरे साथ वाली सीट पर बैठा रामसिंह सीट से उठते हुए कहने लगा-" भाई साहब, मैं ज़रा पेशाब करके आता हू । मेरा ब्रीफकेस यह ऊपर है । इसमें पैसे हैं। कृपाया ध्यान रखिएगा । "सिपाही दिल्ली पुलिस के थे । वे सब यात्रियों का सामना चेक करने लगे । हर एक सामान की तरफ इशारा करके पूछने लगे-" यह सूटकेस किसका है ? यह बैग किसका है ? "



देखते देखते सिपाही अजीत की सीट के पास पहुच गए । "यह अटैची किसकी है ।" एक सिपाही ने पूछा ।



" यह मेरी है । "- ऐसा कहते हुए अजीत की अटैची देखकर सिपाही रामसिंह के ब्रीफकेस की ओर इशारा करते हुए पूछने लगा - " यह किसका है ।"



अजीत बाहर रामसिंह को देखने लगा । सिपाही ने अजीत से पूछा - "क्या यह ब्रीफकेस आपका है ?"



"नहीं, यह मेरा नहीं है । यह एक लड़के का है जो अभी पेशाब करने नीचे गया है; आता ही होगा ।"- मैंने कहा ।



सिपाही ब्रीफकेस को खोलने की कोशिश करने लगा । लेकिन वह लॉक्ड था । सिपाही ने ब्रीफकेस का हिलाया-डुलाया । शायद वह कुछ खोजने की कोशिश कर रहा था । तभी नीचे खड़े इंस्पेक्टर ने जोर से चिल्लाया,"।चटकिंग खत्म नहीं हुई क्या ? चलो नीचे उतरो, देर हो रही है। "



इंस्पेक्टर की आवाज सुनकर सिपाही नीचे उतरने लगे । चेक करने वाले सिपाही ने भी सोचा होगा कि रामसिंह के ब्रीफकेस में कुछ कपड़े ही होंगे क्योंकि वह ज्यादा भारी नहीं था और बस भी लगभग 15 मिनट से खड़ी थी । यात्री भी देरी के लिए चिल्लाने लगे थे ।



बस चलने लगी । रामसिंह बस में नही चढ़ा । अजीत सोचने लगा, "शायद रामसिंह कुछ खरीदने लगा हो और बस छूट गई हो। कोई बात नहीं, वह बस अड्डे पर मिला जाएगा। अपना सामान लेने तो आएगा ही।''



लगभग 25 मिनट बाद बस दिल्ली बस अड्डे पहुँच गई । सब यात्री अपना अपना सामान लेकर उतरने लगे । अजीत भी अपना सामाना उठाने लगा । वह रामसिंह को बाहर देखने लगा पर बाहर वह कहीं नज़र नहीं आया । अजीत ने उसका ब्रीफकेस भी उतार लिया और नीचे उतरकर रामसिंह का इंतजार करने लगा ।



अजीत को रामसिंह का इंतजार करते-करते दस मिनट गुज़र चुके थे लेकिन उसका कही अता पता नहीं था । तभी अजीत के मन में कुविचार आने लगे- "अरे अजीत, रामसिंह के ब्रीफकेस में 50-60 हजार रूपए हैं । वह न ही मेरा पता जानता है और न ही नाम । मैं इसे घर ले चलता हुँ । आई हुई लक्ष्मी को नहीं ठुकराते । बिन माँगे माया मिल रही है । ऑटो पकड़ो और चुपचाप घर निकल चलो । "



अपने मन को समझाने के लिए फिर अजीत सोचने लगा- "राम सिंह का पता भी तो मालूम नहीं है और यदि तुम यह ब्रीफकेस पुलिस को दोगे तो वह भी तो अपने पास ही रख लेगी। आज कल इतना ईमानदार कौन है । तुम ही क्यों न इस पैसे को खुद रख लो । "



और अजीत ने ऐसा सोचते सोचते एक ऑटो को आवाज़ दी और उस में सामान रखकर उसे शाहदरा चलने को कहा। कुछ देर बाद ऑटो शाहदरा पहुच गया। उसने सामान उतारा, ऑटो वाले को पैसे दिए और घर पहुच गया । घर आते ही उसने रामसिंह का ब्रीफकेस का ताला तोड़ दिया । उसे कुछ कपड़े नजर आये । उसने कपड़ों को हटाया तो उसे पोलिथिन में लिपटे कुछ पैकेट नज़र आये ।



उसने एक पैकेट उठाकर ध्यान से देखा तो वह घबरा गया- "बाप रे बाप, यह तो हिरोइन है । हिरोइन से भरे इतने पैकेट देखकर अजीत स्तब्ध रह गया । उसके माथे पर पसीना आ गया। हाथ कॉपने लगे। उसे कुछ नहीं सूझा। उसने सोचा पहले चाय बनाई जाए। उसने चाय गैस पर चढ़ाई। मस्तिष्क अशांत था और उसमें तरह तरह के विचार मन में आने लगे,- " हिरोइन रखना कानूनी अपराध है। यह अपराध "एन्टी नारकाटिक्स एक्ट के तहत 'नॉन बेलेबल' है। सजा 10 साल से कम नहीं। यदि पुलिस आ गई तो तुम रंगे हाथों पकड़े जाओगे ।''



अजीत ने चाय कप में डाली और कुर्सी पर बैठ गया । चाय सामने मेज पर रखी हुई थी लेकिन उसे पीने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था । उसे फिर बुरे बुरे विचारों ने घेर लिया, "हिरोइन 8-10 लाख से कम की नहीं होगी । रामसिंह जिस भी गैंग का सदस्य होगा, वह मुझे ढूँढ़ ही लेंगे और ब्लेकमेल करेंगे। अपने गैंग में शामिल करने पर जोर देंगे या फिर मुझे मार डालेंगे।"



ऐसा सोचते सोचते वह पसीने से तर हो गया। वह तुरंत उठा और उस ब्रीफकेस को, हिरोइन सहित कार की गैराज़ में रख आया। उसने सोचा - "पुलिस या गैंग का आदमी यदि यहाँ आया तो कम से कम घर में हिरोइन नहीं ढूँढ़ पाएगा और तुम बच जाओगे । "



अजीत चाय पीने लगा । चाय उसे कड़वी लग रही थी । तभी उसे ध्यान आया ,"अरे बेवकूफ ! पुलिस तो गैराज़ भी ढूढ़ेगी , और यदि गैराज़ में हिरोइन मिल गई तो तुम्हें 10 साल की कैद हो जाएगी । जमानत भी नहीं होगी और बेइज्जती होगी सो अलग । "



अजीत ने चाय बीच में ही छोड़ दी और कमरे में टहलने लगा । कभी इधर जाता तो कभी उधर । यह ब्रीफकेश उसका दुश्मन बन गया था । उसका मन का चैन गायब हो चुका था; ब्रीफकेस के अलावा उसने दिमाग में कुछ भी नहीं आ रहा था । जैसे सोचने की शक्ति बिल्कुल खत्म हो गई हो ।



तभी दरवाजे की घंटी बजी । अजीत थर थर काँपने लगा। वह सोचने लगा - "शायद गैंग के आदमी हैं।.... नहीं नहीं, शायद पुलिस होगी।"



अजीत जैसे शक्तिहीन हो गया था । उसके पास दरवाजें के पास तक चलने की हिम्मत भी नहीं थी । कभी उसे लगता पुलिस उसे हथकड़ी पहनाकर थाने ले जा रही है और कभी लगता असामाजिक गैंग के गुंडों ने उसे गोली मार दी है । तभी उसे दरवाजे के बाहर से आवाज आई, " साहिब जी, सो रहे हो क्या ? मैं महरी हूँ ; घर का काम करने आई हूँ । "



महरी की आवाज सुनकर अजीत की जान मे जान आई । लेकिन अजीत ने दरवाजा नहीं खोला और न ही कुछ उत्तर दिया । महरी ने तीन चार बार घंटी बजाई, कुछ इंतजार किया और फिर चली गई ।



बाहर सूरज छिप चुका था । कुछ-कुछ अँधियारा छाने लगा था । उसके दिमाग में एक विचार आया -" क्यों न इस ब्रीफकेस को कहीं बाहर फेंक आऊँ । न रहेगा बांस और न बजेगी बासुरी ।"



वह चुपचाप उठा और उस ब्रीफकेस को लेकर बाहर जाने लगा । पास ही एक गंदा नाला बहता था । उसने सब हिरोइन उस नाले में फेंक दी और एक सूनसान जगह पर ब्रीफकेस भी छोड़ दिया । अँधेरे में अजीत को कोई नही देख पाया । घर आकर उसने राहत की साँस ली ।



उसका डर कम तो हुआ लेकिन अभी भी वह घबराया हुआ था । कहीं कोई ढूढ़ता हुआ यहाँ न आ जाए । वह दो दिन ऑफिस भी नहीं गया । उसे डर था कही रामसिंह न मिल जाए और हिरोइन माँगने लगे ।



दो दिन बाद सहमा सहमा वह ऑफिस गया । उसे लगा जैसा हर आदमी उसे घूर रहा हो ।



आज उस घटना को घटे लगभग एक साल बीत चुका है । पूरा साल उसने डर- डर कर जिया । शायद जिया ही नहीं । एक साल बीतने पर भी उसे सपने में कभी रामसिंह और कभी पुलिस नज़र आती रहती है। यह डर- डर कर हर पल मरने की यह सज़ा 8-10 लाख जुर्माने से भी महंगी थी । लालच व्यक्ति को कैसे किसी अंधे कुएँ में गिरा सकता है - यह बात वह कभी नहीं भूल सकता ।



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Dr Pramod Kumar

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