Friday, March 25, 2011

एक रोटी-ड़ा प्रमोद कुमार

एक रोटी-ड़ा प्रमोद कुमार



एक शाम मैं लालबाग के एक रेस्टोरेंट में बैठा चाय पी रहा था । सामने मेज पर दैनिक अखबार पड़ा था । मैंने अखबार उठाया और उसे पढने लगा । अखबार ज्यादातर लूट, चोरी, डाका, कत्ल, रिश्वतखोरी आदि की खबरों से भरा पडा था जो आज के समाज के गिरते स्तर को उजागर कर रहा था । तभी मेरी नज़र एक खबर पर पड़ी जिसमें लिखा था आई.आई.टी पास जवान लड़के ने गोमती में कूदकर आत्महत्या की । आगे लिखा था कि लड़का पिछले दो साल से बेरोजगार था । इसीलिए नौकरी न मिलने के कारण उसने मौत को गले लगा लिया ।



इस खबर को पढकर मैं सोचने लगा,'' क्या कोई भी परेशानी मौत से बड़ी हो सकती है ? क्या जिन्दगी इतनी सस्ती है कि उसे खुद ही मौत को समर्पित कर दो ? आज के माहौल में जीना मुश्किल हो सकता है लेकिन इतना मुश्किल भी नही कि किसी समस्या का कोई हल ही न हो । जिन्दगी और समाज से भागना तो कायरता है । कई लोग अपनी परेशानियों का शीघ्र हल चाहते है इसलिए संघर्ष का रास्ता छोड़कर आसान रास्ता अपनाने लगते है और झूठ, चोरी, रिश्वतखोरी आदि की राह अपना लेते हैं । लेकिन सच्चे मानव मूल्यों का महत्व कभी कम नही होता क्योंकि यही मूल्य तो समाज के स्तम्भ हैं जिन पर समाज रूपी इमारत टिकी हुई है । अभी भी बहुत से लोग हैं जो सिद्धान्तों से समझौता नही करते । सारी उम्र सच्चाई एवं ईमानदारी की राह पर चलकर संघर्ष करते रहते हैं । हो सकता है उन्हें वो ऊँचाई न मिले जिसके वे हकदार हैं । लेकिन इस राह चल कर जो आन्तरिक शान्ति एवं तृप्ति उन्हें मिलती है उसका महत्व ऊँचाइयों से अधिक है, जहाँ उन्हें पहुँचना था। सही रास्ते पर चलना हर पल को आनंदित बनाना है जबकि ध्येय को प्राप्त करना एक पल का आनंद है। सच्चा सुख तो केवल महसूस किया जा सकता है । वह मन का अहसास है । आत्मा का आनन्द है । ''



मैं यह सोच ही रहा था तभी नौ-दस वर्ष के एक लडके ने रेस्टोरेंट में प्रवेश किया । उसने रेस्टोरेंट मालिक को एक रुपये का सिक्का देते हुए कहा, '' एक रोटी मिलेगी ?''



मैंने लड़के के चेहरे की ओर देखा । उसके चेहरे पर भूख की लकीरें तो थी लेकिन सब की सब स्वाभिमान के प्रकाश से रौशन ।



मालिक ने कहा, '' मिल जाएगी'' और ऐसा कहकर उसने बेरे से एक रोटी पर कुछ सब्जी रख लाने को कहा ।



मैं यह सारा मंजर देख रहा था । मैंने बेरे को बुलाया और कहा,'' इस बच्चे को चार रोटियाँ और कुछ सब्जी दे दो । पैसे मैं दे दूँगा ।''



बेरा चार रोटी और कुछ सब्जी कागज पर रखकर लाया और उस लड़के को देने लगा ।



लड़के ने खाने की ओर देखते हुए कहा, '' आपने तो कल चार रुपये की चार रोटियाँ दी थी । आज एक रुपये में चार रोटियाँ क्यों दे रहे हो ? मुझे भीख नही चाहिए । मैंने एक रुपया दिया है। एक रुपये की एक रोटी होती है । आप मुझे एक ही रोटी दीजिए ।''



मुझे बच्चे के स्वाभिमान को ठेस पहुँचाकर बहुत दु:ख हुआ लेकिन साथ ही साथ ऐसे स्वाभिमानी लड़के से मिलकर प्रसन्नता भी हुई ।



रेस्टोरेंट मालिक भी सब समझ गया और उसने एक रोटी पर कुछ सब्जी रखकर उसे थमा दी । लड़का बैठकर उसे खाने लगा । वह मेरी ही मेज की सामने वाली कुर्सी पर बैठा था । मैंने पूछा बेटे क्या करते हो ? ''



लड़के ने जवाब दिया, '' मैं अगरबत्तियाँ बेचता हूँ । ''



'' दिन में कितनी आमदनी हो जाती है ?'' मैंने फिर पूछा ।



लड़के ने कहा, '' यही कोई 20 - 30 रुपये । हाँ आज 21 रुपये की आमदनी ही हो पायी । साहिब, मेरी माँ बहुत बीमार है । मेरा बाप नही है । इसलिए मुझे ही माँ की सेवा करनी पड़ती है ।''



'' माँ से बहुत प्यार करते हो ?'' मैंने पूछा ।



लड़का बोला,'' माँ ही तो है जिसने मुझे पाला, पोसा । साहिब , मेरी माँ मुझे बहुत प्यार करती है। माँ ने मुझे कहा था - ``बेटा, भूखा रह लेना लेकिन कभी किसी के सामने हाथ नही फैलाना । भीख नही माँगना । न कभी चोरी करना और न ही कभी झूठ बोलना । ये बातें पाप हैं क्योंकि ये स्वयं को तो दुख देती ही हैं, दूसरों का भी विश्वास तोड़ती है; उन्हें दुख पहुंचाती है । तुम मेहनत से ही कमा कर खाना ।''



'' अच्छा साहिब, मैं अब चलता हूँ । मेरी माँ मेरा इन्तजार कर रही होगी । उसे दवा भी पिलानी है।'' - ऐसा कहकर वह उठ कर जाने लगा ।



मैं उसे जाते हुए देखने लगा । वह एक रोटी खाकर भी संतुष्ट था । वह स्वाभिमान से अपने घर की ओर चला जा रहा था - अपनी बीमार माँ के आँचल में सो जाने के लिए। दूसरी और सूर्य डूब रहा था - अस्ताचल में खो जाने के लिए।



मुझे आज सायं दो सूर्य जाते नजर आ रहे थे । एक सूर्य की लालिमा तो उसकी उस खुशी को प्रकट कर रही थी जो उसे अपने कर्त्तव्य निभाने में मिली थी । उसका सारे दिन जलना सार्थक हुआ था क्योंकि उसने खुद जलकर भी दूसरों को रोशन किया, जीवित रखा । दूसरा सूर्य उस लड़के का स्वाभिमान के साथ चमकता चेहरा था जो उसने ईमानदारी के साथ अपना कर्तव्य निभाने में पाया था।

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Dr Pramod Kumar

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