Tuesday, October 6, 2009

कच्चा मकान-डा. प्रमोद कुमार

कच्चा मकान-ड़ा प्रमोद कुमार

आज ही मुझे एक पत्र मि‍ला । बालू रेत के कण उसमें चि‍पके थे । जैसे ही पत्र पढ़ने लगा तो मुझे लगा कि‍ वह कच्चा मकान जि‍सकी दीवारों से सटकर हम कभी एक साथ बैठे थे, बाते की थी, एक तेज तूफान के कारण बालू से ढक गया हो और मैं एक टीले पर बैठा यह नजारा देख रहा हूं । यह पत्र रेश्मा का था जो जैसलमेर से आया था । पत्र पढ़कर मैं उसका जबाब लि‍खने लगा ।

``प्रि‍य रेश्मा,

तुम्हारा पत्र पढ़कर पुरानी यादें ताज़ा हो गयी। मुझे आज भी याद है पि‍छले महीने की वह दो तारीख जब मैं तुम्हें देखने जैसलमेर गया था । तभी तुमने उस कच्चे मकान के बारे में बताया था जो कभी-कभी गर्मि‍यों में तुफानी हवाओं के कारण बालू रेत में समा जाता था और वहां एक टीला बन जाता था। मैं उस मकान को टीला बनते अपनी आंखो से देख तो नही पाया लेकि‍न आज मुझे चंदीगढ़ वि‍श्ववि‍द्यालय के होस्टल के कमरा नंबर 7 से वह दृश्य साफ-साफ दि‍खलायी पड़ रहा है । मुझे वह मकान बालू रेत में समाते हुए साफ-साफ नज़र आ रहा है ।

जानती हो, मैने कभी सोचा था कि‍ हम शादी के बाद उसी कच्चे मकान में रहेंगे और अपने प्यार से इसे संवारेंगे । प्यार की सीमेन्ट से इसकी दीवारों पर लेप करके इसे पक्का बनाएंगे । जहां हम हो और हो बस हमारा प्यार । और कोई न हो । वो सपनों का मकान आज बालु में समा गया ।

तुमने पत्र में डा. रमेश के बारे में लि‍खा जो तुम्हारे गांव का ही है । तुम उससे बहुत प्यार करती हो पर वह तीन साल पहले तुम्हें कि‍शोरी से युवती बना कर कनाडा चला गया और तुम अभी भी उसको चाहती हो । काश यह बात तुमने दो तारीख को बता दी होती जब मैं तुम्हें जैसलमेर में मि‍ला था । मैं सपने तो न देखता । मुझे अब भी याद है वो दो तारीख । कि‍तने आदर से तुमने मेरा स्वागत कि‍या था । कि‍तने प्यार से मुझे जैसलमेर का कि‍ला दि‍खाया था और सायं को कच्चे मकान की दीवारों की छावँ में बैठकर बाते की थी । वो टीलों पर घुमाना मुझे आज भी याद है । बालू रेत की ठंडी-ठंडी हवाएँ और रेत के टीलो पर तुम्हारे साथ हाथ में हाथ ले चलना मुझे आज भी याद है । तुम्हारे शेखावाटी तीखे नयन-नक्स मुझे बहुत आकर्षि‍त करते थे और तुम्हारे पि‍ता श्री रणसिंह सेखावतजी तो दि‍ल से चाहते थे कि‍ तेरी और मेरी शादी हो जाये ।

रेश्मा, तुमने रमेश के बारे में पहले न बतला कर अच्छा नहीं कि‍या । मैंने तुम्हें प्यार की नि‍गाह से देखा था और दि‍ल से चाहा था । क्या तुमने अपने माता-पि‍ता को रमेश के बारे में बताया ? यदि‍ नहीं तो तुरन्त बता दो जि‍ससे की वे रमेश के मां-बाप से मि‍लकर तुम्हारी रमेश से शादी की बात कर सकें । यदि‍ तुम उसे चाहती हो तो तुरन्त बता दो । तुमने लि‍खा है कि‍ रमेश ना तो कनाडा से वापस आना चाहता है और न ही तुम्हें वहां बुलाना चाहता है । लेकि‍न क्यों? क्या वह तुम्हें प्यार नहीं करता ?

तुमने पत्र मे आगे लि‍खा है कि‍ मुझे रमेश के बारे में जानकर बुरा तो नही लग रहा है । रेश्मा ! मैं बुरा तो नहीं मान रहा लेकि‍न हां अच्छा नहीं लग रहा क्योंकि‍ तुमने ये सब बाते मुझे उस समय नहीं बतायी । तुम लि‍खती हो कि‍ तुमने अपनी इज्जत छुपाने एवं मां-बाप को परेशानीे से बचाने के लि‍ए जैसलमेर में उस दि‍न ये सब बातें मुझे नहीं बतायीं ।

रेश्मा, कोई बात व्यक्ति‍ हमेशा के लि‍ए नहीं छुपा सकता । इश्क छुपाने से नहीं छुपता । व्यक्ति‍ अपने आप से कोई बात छुपा ही नहीं सकता । वक्त कभी न कभी हर बात कह देता है और यदि‍ वह नहीं कहता तो व्यक्ति‍ का व्यवहार एवं उसका चेहरा उन वि‍चारों और भावों को प्रकट कर देता है जि‍सको वो छुपाने का प्रयत्न करता है ।

रेश्मा, तुम अपने बूढ़े मां-बाप एवं अपने आप को धोखा दे रही हो। काश तुम समझ सकती प्यार क्या होता है । प्यार वासना नहीं है, और न ही प्यार केवल शारीरि‍क मि‍लन है । प्यार एक आत्मि‍क सुख है, एक शक्ति‍ है, एक सच्ची तृप्ति‍ है, एक मन की भावना है । एक लहर है जो सुख-दु:ख की सतह से कही बहुत नीचे गहरे तल पर हि‍लोरे लेती है । शरीर रूपी साज की वह धुन है जि‍सकी आवाज से आत्मा को संतुष्टि‍ मि‍लती है । प्यार एक भक्ति‍ है, एक तपस्या है । प्यार दो आत्माओं का मि‍लन है । प्यार एक ऐसा व्यापार है जहां खोना ही पांना है, जहां देना ही लेना है ।

रेश्मा ! मेरी शादी तुमसे हो या न हो लेकि‍न मैं हमेशा तुम्हारा भला ही चाहूंगा । इसलि‍ए कहता हूं कि‍ अपने और रमेश के संबंधों के बारे में अपने माता पि‍ता को तुरन्त बता दो और यदि‍ रमेश तुुमसे शादी नहीं करता तो उसे भूल जाओ । जीवन बहुत ही छोटा है । समय ने इसे पूर्ण रूप से जकड़ रखा है ।

तुम्हारे पत्र में यह लि‍खा है कि‍ तुम रमेश को चाहती हो और उसी से शादी करोगी । रेश्मा, इसे मैं तुम्हारा पागलपन कहूं या तुम्हारा भोलापन । याद रखो, एक हाथ से ताली नहीं बजती ।

तुम आगे लि‍खती हो कि‍ तुम एक डाक्टर से शादी करना चाहती हो जो अमीर हो । बेवकूफ लड़की, मैं एक शुभचि‍न्तक की हैसि‍यत से तुम्हें यही कहूंगा कि‍ दो व्यक्ति‍यों का बंधन मन और आत्माओं का होना चाहि‍ए और प्यार का सांसारि‍क लालसाओं से क ोई संबंध नहीं । सांसारि‍क लालसाओं को पाने के लि‍ए बनाये तन के सम्बन्ध वो संतुष्टि‍ नहीं दे सकते जो मन और आत्माओं के बंधन एवं संबंधों से मि‍लते है । एक वेश्या लाख सुख सुवि‍धाओं से पूर्ण हो, पैसे वाली हो, तन-सुख हो पर वह सबसे दु:खी एवं गरीब औरत होती है । काश तुम संबंधों का वि‍ज्ञान समझ पाती । व्यक्ति‍ का डाक्टर, वकील, व्यापारी या जज-होना उतना जरूरी नहीं जि‍तना उसका अच्छा होना, सच्चा होना, ईमानदार होना । केवल पैसा ही संतुष्टि‍ और सुख नहीं देता । ऐसा होता तो हर अमीर सुखी होता, संतुष्ट होता । सांसारि‍क इच्छाओं की कोई सीमा नहीं होती । ये जि‍तनी ही बढ़ती जाती है उतने ही दु:ख बढ़ते जाते है
रेश्मा, मैं तुम्हारा दि‍ल नहीं तोड़ना चाहता और न ही रमेश के खि‍लाफ तुम्हें भड़का रहा हूं । अंत में तुम्हें यही दि‍ल से दुआ देता हूं कि‍ तुम खुश रहो । तुम्हारी इच्छाएं पूरी हों । तुम रमेश से शादी कर पाओं और जि‍न्दगी भर सुखी रहो ।

पत्र लि‍खकर मैने उसे लि‍फाफे में डाला और लि‍फाफे को चि‍पका कर बंद कर दि‍या । उस पर रेश्मा का पता लि‍खा और अपने कमरे की खि‍ड़की से बाहर देखने लगा । दि‍नकर अपनी सारे दि‍न की यात्रा के बाद अस्तांचल में छुपने जा रहा था । चारों ओर सांझ की लालि‍मा दि‍नकर की खुशी को दर्शा रही थी । मुझे ऐसा लगा जैसे सूर्य मुझ पर हंस रहा हो । सारे दि‍न जलने पर भी वह खुश है क्योंकि‍ उसे यह संतुष्टि‍ है कि‍ उसका जलना सार्थक हुआ । उसने खुद को जला कर संसार को रोशन कि‍या और सब को जीवि‍त रखा ।

अब सूर्य ढल चुका था । धीरे-धीरे सूर्य की लालि‍मा कम हो गयी थी । अचानक मुझे लगा कि‍ तेज हवा का एक झोंका रेत के टीले समेत उस कच्चे मकान को भी उड़ाकर कहीं दूर ले गया । अब केवल अंधकार ही अंधकार था । अब न कोई टीला था और न ही कोई मकान । बस मैं था और था चंडीगढ़ वि‍श्ववि‍द्यालय के होस्टल का वह कमरा नंबर सात । मैने लि‍फाफा हाथ में लि‍या और उसे लेकर लेटर बाक्स में डालने बाहर चल दि‍या । पत्र लेटर बाक्स में डालकर मैं अपने कमरे में आ गया । कुर्सी पर बैठकर खि‍ड़की से बाहर देखने लगा ।

बाहर रात का अंधेरा छा चुका था । यह रात का अंधेरा मुझे परेशान कर रहा था लेकि‍न मैं शांत
था, क्योंकि‍ मुझे पता था कि‍ हर रात के अंधकार के बाद सुबह का उजाला आता है । मैं उस उजाले की आस मन में लि‍ये अपने बि‍स्तर पर लेट गया ।

1 comment:

  1. good narration of an emotive piece. Life is like this. we meet to de-part.
    Love shines for ever lust dies its own death.
    congratulations.
    veerubhai1947.blogspot.com

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